पिछले दौर में रूस और पश्चिमी देशों के बीच आपसी सहमति बहुत मुश्किल से कभी-कभी ही बन पाती है। रूस, अमरीका और यूरोपीय देशों की सरकारों का रवैया सीरियाई गृहयुद्ध के सिलसिले में एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है। ये देश पूर्वी उक्रईना में चल रहे संकट पर भी अलग-अलग नज़रिया रखते हैं और एक-दूसरे पर अक्सर घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हैं। लेकिन इसके विपरीत उत्तरी ध्रुव प्रदेश के सिलसिले में उनकी आपसी बयानबाज़ी बहुत शान्त और निश्चिन्त क़िस्म की है।
पिछली 11 मई को अलयास्का प्रदेश के फ़ेरबेंक्स नगर में उत्तरी ध्रुवीय परिषद की बैठक ने भी इस बात की पुष्टि की। रूस के विदेशमन्त्री सिर्गेय लवरोफ़ ने बैठक में बोलते हुए कहा — उत्तरी ध्रुवीय इलाके में किसी तरह का कोई संकट पैदा होने की कोई सम्भावना नहीं है। सिर्गेय लवरोफ़ ने कहा कि रूस इस बात की पूरी-पूरी कोशिश कर रहा है कि उत्तर ध्रुवीय प्रदेश शान्ति और आपसी सहयोग का इलाका बना रहे।
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लवरोफ़ के पश्चिमी सहयोगी यानी डेनमार्क, आइसलैण्ड, कनाडा, नॉर्वे, अमरीका, फ़िनलैण्ड और स्वीडन के विदेशमन्त्रियों ने भी क़रीब-क़रीब ऐसी ही बातें कहीं। ये सभी देश उत्तर ध्रुवीय परिषद में शामिल हैं। उत्तर ध्रुव से सम्बन्धित सभी सम्मेलनों और बैठकों में परम्परागत रूप से यही माना जाता रहा है कि उत्तरी ध्रुव शान्तिपूर्ण इलाका है। लेकिन इसके बावजूद सभी को इस बात का भरोसा नहीं है कि वास्तव में यह बात पूरी तरह से सच है।
रूस की विज्ञान अकादमी के अन्तरराष्ट्रीय सुरक्षा समस्या संस्थान के प्रमुख विशेषज्ञ अलिक्सेय फ़िनेन्का ने याद दिलाया कि शीत युद्ध के दौर से ही उत्तरी ध्रुव के इलाके में भारी सैन्य गतिविधियाँ होती रही हैं। उन्होंने कहा — रूस और अमरीका के सभी अन्तरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों का रास्ता उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश से होकर ही गुज़रता है। रूस के सभी प्रमुख परमाणु रणनीतिक केन्द्र भी इसी इलाके में बने हुए हैं। इस दृष्टि से उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश आपसी टकराव का एक प्रमुख मोर्चा बना हुआ है।
कुछ आधिकारिक सूत्रों का भी यही कहना है कि इस इलाके में छिपी हुई हथियारबन्दी की दौड़ चल रही है। विगत 3 मई को अमरीकी तटवर्ती सुरक्षा सेना के कमाण्डर पॉल ज़ुकुंफ़्त ने ’फ़ॉरेन पॉलिसी’ पत्रिका से बात करते हुए यह चिन्ता व्यक्त की कि रूस ने उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश में अमरीका के सामने ’शह और मात की बिसात’ बिछा रखी है। उसने वहाँ बड़ी संख्या में अपने बर्फ़तोड़क जहाज़ तैनात कर रखे हैं और रूसी सेना व रूसी सैन्य तकनीक भी वहाँ बड़ी संख्या में उपस्थित है।
दूसरी तरफ़ रूस भी उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश में नाटो सन्धि संगठन को मज़बूत बनाए जाने को लेकर हमेशा की तरह अप्रसन्न दिखाई दे रहा है। विगत 26 अप्रैल को रूस के रक्षामन्त्री सिर्गेय शायगू ने उत्तरी नॉर्वे में एक नई सैन्य छावनी बनाए जाने की आलोचना की, जहाँ बारी-बारी से नाटो देशों की सेनाएँ आकर रहेंगी। सिर्गेय शायगू ने इसे ’ताक़त के बल पर नाटो के हितों का प्रदर्शन’ बताया।
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इन असन्तुष्ट बयानों के बावजूद अन्तरराष्ट्रीय मामलों सम्बन्धी रूसी परिषद के महानिदेशक अन्द्रेय करतुनोफ़ का मानना है कि उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश में सैन्य दृष्टि से रूस का वर्चस्व इतिहास में हमेशा ही रहा है।
रूस-भारत संवाद से बात करते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों के साथ हमेशा से ही यह मौन समझ बनी रही है कि उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश रूस के लिए एक महत्वपूर्ण प्रदेश है क्योंकि रूसी नौसैनिक बेड़े के लिए अमरीका की तरह अटलाण्टिक और प्रशान्त महासागरों तक पहुँचना आसान नहीं है। इसीलिए नाटो के सदस्य देशों ने भी इस इलाके में रूस के बराबर पहुँचने की कोशिश नहीं की। अन्द्रेय करतुनोफ़ ने कहा — यदि आगे भी यह समझ इसी रूप में बनी रही तो मेरा ख़याल है कि हम इस इलाके में हथियारबन्दी की दौड़ से बच जाएँगे।
उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश — बेहद मूल्यवान इलाका है। इस इलाके में पूरी पृथ्वी का कुल 13 प्रतिशत तेल और 30 प्रतिशत प्राकृतिक गैस सुरक्षित है। उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश में जमी बर्फ़ पिघल रही है। इसके बाद जल परिवहन के लिए उत्तरी हिम महासागर का रास्ता खुल जाएगा। उत्तरी ध्रुवीय परिषद के विशेषज्ञों का मानना है कि सन् 2030 तक उत्तरी हिम महासागर की बर्फ़ पूरी तरह से पिघल जाएगी और उसके बाद यह जहाज़रानी के लिए दुनिया का सबसे बड़ा जलमार्ग बन जाएगा।
इस दृष्टि से यह जानना भी ज़रूरी है कि अभी तक इस सवाल को हल नहीं किया गया है कि उत्तरी ध्रुवीय महासागर का कितना इलाका किस देश का है। उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश रूस, अमरीका, नॉर्वे, डेनमार्क और कनाडा पाँच देशों में बँटा हुआ है। सभी पाँचों देश इस प्रदेश को सारी दुनिया की विरासत मानते हैं, लेकिन वे हमेशा एक-दूसरे के साथ सीमा-विवाद भी करते रहते हैं। उदाहरण के लिए सँयुक्त राष्ट्र संघ की सागरों सम्बन्धी समिति में पेश किए गए दावों में रूस, कनाडा और डेनमार्क ने समुद्र में डूबे तटवर्ती इलाकों पर अपना-अपना अधिकार जतलाया है और अपने पड़ोसियों के दावों को खारिज किया है।
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अलिक्सेय फ़िनेन्का का मानना है कि सँयुक्त राष्ट्र संघ की सागरों सम्बन्धी समिति इन दावों के बारे में जो फ़ैसला करेगी, उसके बाद इन देशों के बीच गम्भीर टकराव पैदा हो सकता है। उदाहरण के लिए यदि यह समिति उत्तरी ध्रुव का इलाका नाटो के किसी देश को देने का फ़ैसला करती है और वहाँ नाटो के विमान उड़ने लगते हैं तो टकराव की सम्भावना काफ़ी बढ़ जाएगी। उत्तरी हिम महासागर के जल-परिवहन मार्ग पर भी स्थानीय स्तर के कुछ टकराव दिखाई दे सकते हैं।
दूसरी तरफ़ रूस की अन्तरराष्ट्रीय मामलों सम्बन्धी रूसी परिषद के महानिदेशक अन्द्रेय करतुनोफ़ का मानना है कि तीन ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से टकराव नहीं होंगे। पहला कारण तो यह है कि सभी खनिज भण्डार उन इलाकों में स्थित हैं, जिनका पहले ही बँटवारा हो चुका है और जिनको लेकर कोई विवाद या मतभेद नहीं हैं। दूसरी बात यह है कि सँयुक्त राष्ट्र संघ की सागरों सम्बन्धी समिति में दावे बहुत पहले ही कर दिए गए थे और अब इन दावों का निपटारा ये देश आपस में एक-दूसरे को छूट और रियायतें देकर भी कर सकते हैं, जैसे 2010 में बैरिण्ट सागर में रूस और नॉर्वे ने अपने-अपने इलाके का बँटवारा किया था।
अन्द्रेय करतुनोफ़ के अनुसार, तीसरा कारण यह है कि सँयुक्त राष्ट्र संघ में सभी दावों पर एक-एक करके विचार किया जाता है और 2020 से पहले शायद ही इन दावों पर विचार किया जाएगा। तब तक बहुत कुछ बदल चुका होगा। तब तक हो सकता है कि अन्तरराष्ट्रीय तनाव भी ख़त्म हो जाए। इसलिए करतुनोफ़ का मानना है कि उत्तर ध्रुवीय समस्या को नाटकीय बनाने की ज़रूरत नहीं है। हाँ, यह समस्या है, लेकिन यह कोई ऐसी समस्या नहीं है कि जिसे लेकर युद्ध किया जाए।
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