रूसी औरतें ऐसे पुरुषों को अच्छी नज़र से नहीं देखती हैं, जो अपना वैसे ही ख़याल रखते हैं, जैसे औरतें रखती हैं। अगर कोई पुरुष मॉइस्चराइजिंग लोशन लगाता है, नए से नए फ़ैशन पर नज़र रखता है, अपने नाखूनों की ख़ूबसूरती पर ध्यान देता है, ब्यूटी सैलून जाने में भी लापरवाही नहीं बरतता और सिर्फ़ जिम में जाकर ही मेहनत करता है, तो उस पर शक पैदा हो ही जाता है। खेल के मैदान में तो रूसी लोग ताक़तवर बनने के लिए जाते हैं, जिम में जाकर शरीर को ख़ूबसूरत नहीं बनाते।
रूस-भारत संवाद से बातें करते हुए मनोवैज्ञानिक येलेना कालिन ने कहा — बाहरी ख़ूबसूरती इतनी ज़रूरी नहीं है। रूसी औरतों को सुन्दर-स्वस्थ पुरुष पसन्द हैं, लेकिन जिम में जाकर बॉडी बनाने वाले तगड़े पुरुषों की उन्हें ज़रूरत नहीं है। येलेना कालिना के मतानुसार स्त्रैण चेहरे वाले और बार-बार ख़ुद को आइने में देखने वाले मर्दों की तरफ़ भी रूसी स्त्रियाँ आकर्षित नहीं होतीं।
रूसी समाज में मर्दों की ख़ूबसूरती बहुत ज़्यादा महत्व नहीं रखती है। रूसी औरतों का मानना है — चाहे कुछ भी हो, पुरुष पुरुष जैसा दिखे, यह ज़रूरी है। बस, वह बहुत ज़्यादा बदसूरत नहीं होना चाहिए। पुरुष वाली कठोर और कड़ियल छवि हो, शक्तिशाली हो, यह फ़ैशनेबुल होने से और हीरो जैसा दिखने से बेहतर है। सुन्दर और मोहक पुरुष रूसी लड़कियों को नहीं लुभाते। पुरुष की कामुक मखमली छवि भी रूस में लोकप्रिय नहीं है। तगड़े शरीर वाले बॉडी-बिल्डर पुरुष सिर्फ़ 8 प्रतिशत रूसी औरतों को ही पसन्द आते हैं।
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फ़ेमेनिज़्म रूस में 1990 के दशक में या 2000 के दशक में लोकप्रिय था और वहीं रह गया — मनोव्यवहार विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक व्लदिस्लाफ़ चुबारफ़ ने कहा — औरतें समानाधिकार की पक्षधर नहीं होतीं। वे अक्सर यह शिकायत करती हैं कि पुरुष उनका सम्मान नहीं करते और लिंगभेदी चुटकुले बनाते-सुनाते हैं, लेकिन वे यह भी जानती हैं कि ’मुक्ति’ क्या होती है। इसलिए वे यह भी चाहती हैं कि पुरानी परम्पराएँ चलती रहें। विभिन्न मंचों पर औरतें इस तरह की बातें भी करती हैं — समानाधिकारों की माँग बहुत हो चुकी। मुझे तो यह पसन्द है कि कोई युवक मेरी मदद करे, कोई मुझे कोट पहनाए या उसे उतारने में मेरी सहायता करे और कोई मेरे सामने आगे बढ़कर दरवाज़ा खोल दे।
व्लदिस्लाफ़ चुबारफ़ ने कहा — रूसी लड़कियाँ यह पसन्द नहीं करतीं कि कॉफ़ी-हाउस में या रेस्तराँ में जब वे किसी पुरुष के साथ कॉफ़ी पीने जाएँ तो दोनों अलग-अलग बिल चुकाएँ ताकि उनकी आर्थिक स्वतन्त्रता पर कोई सन्देह न कर सके। रूस में स्त्री और पुरुष की भूमिकाओं के बीच पूरा-पूरा विभाजन है। रूस में युवकों को युवतियों के ’नाज-नखरे’ उठाने ही चाहिए, तभी पुरुष आदर्श और गर्व करने लायक माना जाता है। इसे रूसी औरतें अपने ’अहम् को सन्तुष्ट करने’ का कारण नहीं बनाती।
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एक और विरोधाभासी तथ्य यह है कि रूसी औरतें ख़ुद को आकर्षण और आराधना का लक्ष्य मानती हैं यानी पुरुष को उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए — चुबारफ़ ने कहा — चाहे कुछ भी हो पुरुष उनकी प्रशंसा करे और इसके बदले वह उनसे कुछ भी न चाहे। हालाँकि यूरोप की औरतें अपने स्वभाव और व्यवहार का बहुत ख़याल रखती हैं और आपसी रिश्तों को बनाए रखने के लिए हमेशा अपने व्यवहार के प्रति सतर्क रहती हैं।
बात सिर्फ़ यही नहीं है कि सारी दुनिया में रूसी लड़कियों की ख़ूबसूरती के चर्चे हैं और वे अपने सौन्दर्य पर घमण्ड करती हैं कि ख़ूबसूरती ही सब कुछ है। शायद परम्परागत रूप से उनका पालन-पोषण ही इस तरह के माहौल में किया जाता है कि उन्हें बाद में बड़े होकर पत्नी और माँ बनना है। इसलिए उनके करियर सम्बन्धी व्यवहार और पेशागत व्यवहार की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया जाता और उसे ज़रूरी नहीं माना जाता।
हालाँकि आज दुनिया बदल रही है। अब हर रूसी औरत सिर्फ़ विवाह करके ही ख़ुश नहीं हो जाती। रूस में भी लैंगिक विकास हो रहा है। लेकिन फिलहाल रूसी औरतों को वही पुरुष ज़्यादा पसन्द आते हैं, जो उनकी पूजा-आराधना करते हैं और उनके उनके सफल या असफल करियर की तरफ़ ध्यान नहीं देते।
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येलेना कालिन ने कहा — आज रूसी औरतों के लिए यह ज़रूरी नहीं है कि मर्द अमीर हो। इससे ज़्यादा ज़रूरी तो यह है कि वह कमाऊ हो और समझ-बूझकर खर्च करना जानता हो।
इसका मतलब यह है कि रूसी औरतें पुरुष का बटुवा नहीं देखतीं, वे यह देखती हैं कि वह भविष्य में कितना आगे बढ़ेगा। वह नई से नई योजनाएँ बना रहा है, कोई स्टार्टअप कम्पनी खोलना चाहता है, कोई नया काम सीख रहा है, उपन्यास-कहानियों के अलावा नॉनफ़िक्शन पढ़ने में दिलचस्पी रखता है — इसका मतलब यह है कि वह काबिल है। रूसी औरतों की नज़र में पुरुष का अपना निजी व्यक्तित्व होना चाहिए। ठीक है कि वह नेतृत्व नहीं करता, लेकिन ताक़तवर तो है, मेहनती तो है, आगे बढ़ने की इच्छा तो रखता है। आज नहीं तो कल वह विकास करेगा। यह अलग बात है कि यह ’कल’ कभी नहीं आएगा।
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रूसी लड़कियों को बहुत ज़्यादा बातूनी पुरुष भी पसन्द नहीं आते। शुरू की दो-चार मुलाक़ातों में तो बातचीत करने का अपना आकर्षण होता है, पुरुष के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारियाँ मिलती हैं। लेकिन बाद में वे यह सोचने लगती हैं कि कुछ काम तो करके दिखाया नहीं, सिर्फ़ बातें ही बनाता रहता है। शायद निकम्मा और आलसी है। बात करने के लिए ही तो सारा दिन फ़ेसबुक पर जमा रहता है — वहाँ दोस्तों-परिचितों की क्या कमी है, बस, वहीं झण्डे गाड़ता है और महल बनाता है।
ख़ुद भी गपशप करने की बेहद शौकीन रूसी औरतें पुरुषों के बारे में सोचती हैं — सीधी सी बात है, जितनी बकवास करता है, उतना काम नहीं करता। कुछ काम भी तो करना चाहिए। बातूनी आदमियों की तो वैसे ही कमी नहीं है। किसी भी कम्पनी के डायरेक्टर को देखिए या सांसद को देखिए या विधायक को देखिए। एकदम बेवकूफ़ लगते हैं, सचमुच? क्या उन्हें अपने जीवन में ऐसा ही एक और पुरुष चाहिए।