मस्क्वा (मास्को) से 1416 किलोमीटर दूर स्थित येकातिरिनबूर्ग नगर से 550 किलोमीटर दूर उराल पर्वतमाला के उत्तरी इलाके में हलतचाह्ल नाम का एक पहाड़ है। स्थानीय आदिवासी पहाड़ी जनजाति मानसी की भाषा में हलतचाह्ल का मतलब होता है — मौत का पहाड़ या मृतकों की पहाड़ी। इस पहाड़ से एक कथा जुड़ी हुई है कि पुराने ज़माने में कभी इस पहाड़ पर 9 शिकारियों को मार डाला गया था। तब से इस पहाड़ पर कोई नहीं जाता। यह भी कहा जाता है कि इस पहाड़ पर कभी भी नौ आदमियों को एक साथ नहीं जाना चाहिए।
मानसी जनजाति की इस कथा को आज कोई भी नहीं जानता, यदि 1959 में यह कथा सच्चाई में नहीं बदल गई होती। तब 1 से 2 फ़रवरी की रात को एक पर्यटक-दल में शामिल 7 युवक और दो युवतियाँ अचानक अपने-अपने तम्बुओं से निकल भागे। उस दिन रात बिताने के लिए हलतचाह्ल पहाड़ की एक ढलान पर उन्होंने अपने तम्बू लगाए थे। अभी तक यह बात साफ़ नहीं हुई है कि दो लोगों के अलावा बाक़ी सब लोग जल्दबाज़ी में बिना कपड़े और जूते पहने अपने-अपने तम्बू छोड़कर बाहर क्यों भागे थे। तब तापमान शून्य से 30 डिग्री कम था। नंगे बदन कोई भी ज़िन्दा नहीं बच सकता था। और उस रात इस द्यातलफ़-दल के सभी सदस्य मारे गए थे। पर्यटक-दल के संचालक का नाम था — ईगर द्यातलफ़। इसलिए इस पर्यटक-दल को भी द्यातलफ़-दल कहकर याद किया जाता है।
बाद में खोजदल ने फ़रवरी के अन्त में और मार्च के शुरू में पाँच युवकों के शव ढूँढ़ निकाले। ये सभी शव उस ढलान से क़रीब आधा किलोमीटर नीचे मिले, जहाँ उन्होंने तम्बू लगा रखे थे। मई में बर्फ़ पिघलने के बाद बाक़ी चार लोगों के शव भी मिल गए। जाँच दल ने पता लगाया कि नौ में से तीन लोगों की मौत उन चोटों के कारण हुई थी, जो किसी शक्तिशाली चीज़ से उन पर हमला करने के कारण उन्हें लगी थीं। बाक़ी लोग ठण्ड में जमकर मारे गए थे। एक युवती का शव मिला तो उसमें उसकी आँखें और जीभ नहीं थी। कुछ मृतकों के शरीर पर पाए गए कपड़ों पर सामान्य से दोगुने अधिक विकिरण के निशान थे।
इस द्यातलफ़-हत्याकाण्ड की जाँच करने वाले अधिकारियों को पहले तो यह सन्देह हुआ कि द्यातलफ़-दल के सदस्यों की हत्या मानसी जनजाति के शिकारियों ने इस बात पर नाराज़ होकर की है कि ये लोग उनके इलाके में क्यों घुस आए हैं, य़ा फिर वहाँ से कुछ ही दूर स्थित एक जेल से भागे हुए अपराधियों ने इनकी हत्या की होगी। लेकिन ये दोनों अनुमान ग़लत सिद्ध हुए... क्योंकि उन दिनों में जेल तोड़कर कोई अपराधी नहीं भागे थे और मानसी जनजाति का इलाका उस जगह से दूर था, जहाँ द्यातलफ़-दल के सदस्यों के साथ यह दुर्घटना घटी थी। इसके अलावा पर्यटकों के शवों पर हथियारों की चोट से हुआ कोई घाव भी नहीं था। जाँच-दल ने यह भी पाया कि पर्यटकों के सभी तम्बू भीतर की तरफ़ से ही कटे हुए थे यानी सभी पर्यटक ख़ुद अपने तम्बुओं से बाहर निकले थे।
मई 1959 के आख़िर में जाँच-दल ने इस मामले की जाँच बन्द कर दी। पर्यटकों की मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया था। उन पर कोई ऐसा दबाव पड़ा था, जिसका सामना वे नहीं कर पाए थे। इस मामले की स्वतन्त्र रूप से जाँच करने वाले बहुत से लोगों ने पाया कि अधिकारियों ने इस मामले को जल्दी से जल्दी बन्द करने में दिलचस्पी दिखाई थी। इस वजह से आम लोगों के बीच इस मामले को लेकर तरह-तरह की अटकलें और अनुमान लगने शुरू हो गए।
सबसे स्वीकृत धारणा यह है कि इस पर्यटक-दल के शिविर पर शायद हिमस्खलन हुआ था। लेकिन पर्य़टकों की खोज करने वाले दल में शामिल कार्यकर्ताओं को हिमस्खलन होने का कोई सबूत नहीं मिला था। तम्बुओं की बल्लियाँ ज्यों की त्यों खड़ी थीं। फिर यह बात भी साफ़ नहीं हुई कि हिमस्खलन से बचने की कोशिश करते हुए सभी पर्यटक नीचे ढलान की ओर ही क्यों भागे थे। उन्हें तो हिमस्खलन के रास्ते से बचकर एक तरफ़ खड़े हो जाना चाहिए था। आम तौर पर पर्यटक इस तरह की ग़लती नहीं करते हैं।
फ़रवरी-मार्च 1959 में द्यातलफ़ पर्यटक-दल के शिविर से कुछ ही दूर स्थित गवाहों ने बताया कि उन्होंने कुछ असामान्य प्राकृतिक घटनाएँ देखी थीं। आसमान पर उन्हें ’आग के जलते हुए गोले’ तथा ’सफ़ेद-सफ़ेद धब्बे’ तैरते हुए दिखाई दिए थे। इन बयानों से और मृतकों के कपड़ों पर पाए गए विकिरण के धब्बों से इस मामले का अध्ययन करने वाले अध्येताओं ने यह अनुमान लगाया कि उस इलाके में सैन्य मिसाइलों और अन्तरिक्ष रॉकेटों के गुप्त परीक्षण किए जा रहे होंगे।
इसके बाद यह अन्दाज़ लगाया गया कि पर्यटकों को ज़हरीली गैस के उस धुएँ ने घेर लिया होगा, जो मिसाइल या रॉकेट के छोड़ने से पैदा हुआ होगा। इसीलिए वे जल्दी-जल्दी अपने तम्बू छोड़कर नीचे ढलान की ओर भागे। लेकिन इस स्थिति में यह बात समझ में नहीं आई कि पर्य़टक दल के सदस्य भागकर इतनी दूर तक क्यों चले गए। उन दिनों पहाड़ पर तेज़ हवाएँ चलती हैं और हवा जल्दी ही धुएँ को आगे उड़ा ले जाती।
रूस में घटी कोई भी रहस्यमय त्रासदी ऐसी नहीं है, जिसमें खुफ़िया एजेंसियों का हाथ न देखा गया हो। ये ख़ुफ़िया एजेंसियाँ स्वदेशी भी हो सकती हैं और किसी शत्रु देश की भी। द्यातलफ़ पर्यटक-दल के मामले में भी लोग ऐसा ही सोचते हैं। लेखक अलिक्सेय रकीतिन ने ’पीछे-पीछे आने वाली मौत’ के नाम से प्रकाशित अपने एक शोध लेख में इस मामले को हल करने के लिए सभी संभावित कारणों पर विस्तार से विचार किया है और एक के बाद एक सभी कारणों को नकारते हुए उन्होंने यह विचार प्रकट किया है कि अमरीकी खुफ़िया एजेण्टों ने ही इस पर्यटक-दल को ख़त्म किया होगा।
रकीतिन के अनुसार, इस पर्यटक-दल में गुप्त रूप से केजीबी के एजेण्ट भी शामिल थे, जो अमरीकियों से मिलकर उन्हें रेडियमधर्मी कपड़ों के नकली नमूने देने वाले थे। लेकिन आख़िरी समय में यह बात खुल गई कि नमूने नकली हैं और इस धोखे से नाराज़ अमरीकी एजेण्टों ने सोवियत एजेण्टों को मार दिया और उनके साथ-साथ बाकी पर्यटकों को भी मौत के घाट उतार दिया।
रकीतिन के इस शोधलेख से असहमत लोगों का कहना है — सोवियत गुप्तचरों को इस तरह गुप्त रूप से उराल पर्वतमाला के किसी पहाड़ पर जाकर रेडियमधर्मी कपड़ों के नकली नमूने देने की क्या ज़रूरत थी, जब वे किसी भी महानगर में भीड़ के बीच गुम होकर ऐसा लेन-देन कर सकते हैं? फिर यह बात भी समझ के बाहर है कि अमरीकी हत्यारों ने पर्यटकों के शव छुपाने की जगह उन्हें यूँ ही क्यों फेंक दिया?
ऊपर बताई गई संभावनाओं के अलावा इस दुर्घटना के घटने की और भी बहुत-सी संभावनाएँ मानी गई हैं, जैसे इन पर्यटकों को सोवियत गुप्तचरों ने ख़त्म कर दिया क्योंकि वे सोवियत मिसाइल परीक्षण के प्रत्यक्षदर्शी बन गए थे। या सोवियत गृह-मन्त्रालय के कमाण्डो ने इन्हें भागे हुए अपराधी समझकर मार दिया। एक संभावना यह भी व्यक्त की गई कि पर्यटकों की हत्या किसी ने नहीं की, बल्कि वे तो किसी बात से घबराकर नीचे की तरफ़ भागे और मारे गए या उन पर किसी जंगली जानवर ने हमला कर दिया... इस तरह के अनुमानों और अन्दाज़ों की संख्या बहुत ज़्यादा है।
जैसाकि प्रसिद्ध रूसी जासूसी लेखक बरीस अकूनिन अपने ब्लॉग में लिखते हैं — हर अनुमान के समर्थक दूसरे अनुमानों की आलोचना करते हैं और अपने-अपने अनुमानों और अन्दाज़ों को विश्वसनीय बताते हैं। हर आदमी सिर्फ़ उन्हीं तथ्यों को मानता है, जो उसके अनुमान की पुष्टि करते हैं और उन तथ्यों की उपेक्षा करता है जो दूसरे अनुमानों का आधार बने हैं।
हलतचाह्ल पहाड़ी पर उस रात क्या घटना घटी थी, वास्तव में उसे जानना अब संभव नहीं है। कम से कम अभी तो कुछ नहीं कहा जा सकता है। 2017 के शुरू में स्विर्दलोवस्क प्रदेश के राज्यपाल एदुआर्द रस्साल ने कहा था कि आज 60 साल बीत जाने के बाद भी इस घटना से जुड़ी जानकारियाँ रूस की सरकार द्वारा ’गुप्त’ रखी जा रही हैं।
यह लेख ’रूस के रहस्य’ नामक उस लेख-शृंखला का एक हिस्सा है, जो रूस-भारत संवाद उन पहेलियों, रहस्यों और विसंगतियों के बारे में प्रकाशित कर रहा है, जो रूस से सम्बन्ध रखती हैं।