एर्न्स्ट हेमिंग्वे के घर में क़रीब 50 बिल्लियाँ और बिलौटे थे और मार्क ट्वेन की प्रशिक्षित बिल्लियाँ सोने का बहाना करती थीं। कवि विलियम वर्ड्सवर्थ अपने प्रिय कुत्ते को अक्सर अपनी कविताएँ पढ़कर सुनाया करते थे और कुर्त वोन्नेगुत ने एक बार कहा था — कुत्ता औरतों से ज़्यादा प्रेरणा देता है क्योंकि औरतों के मुक़ाबले वो हमेशा आपके साथ रहता है। रूस-भारत संवाद आज आपको उन जानवरों के बारे में बता रहा है, जो रूसी लेखकों को प्रिय थे।
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लेफ़ तलस्तोय को घोड़े बहुत पसन्द थे। वे सारी ज़िन्दगी घोड़ों की सवारी करते रहे। घोड़े उनके एकाकीपन के साथी थे और उन्हें प्रकृति के साथ जोड़ते थे। तलस्तोय की बहुत-सी कृतियों में घोड़ों को मुख्य भूमिका में दिखाया गया है। उनकी एक प्रसिद्ध कहानी है — ख़ल्स्तामेर (एक घोड़े की कथा)। इस कहानी में एक घोड़ा अपने जीवन की कहानी सुना रहा है। इसके अलावा पाठक तलस्तोय के ’आन्ना करेनिना’ नामक उपन्यास में वर्णित ’फ़्रू-फ़्रू’ नामक उस घोड़े को भी याद करें, जिसपर से उपन्यास का नायक वरोन्स्की घुड़दौड़ के समय गिर पड़ा था।
अन्तोन चेख़फ़ को ’ताक्सा’ प्रजाति के कुत्ते बहुत पसन्द थे। मस्क्वा (मास्को) अंचल में स्थित उनकी जागीर ’मेलिख़वा’ में लम्बे समय तक उनके दो कुत्ते भी उनके साथ रहा करते थे, जिनको उन्होंने मनुष्यों की तरह के नाम दे रखे थे। चेख़फ़ उन्हें ’ब्रोम इसाइविच’ और ’हीना मार्कव्ना’ कहकर बुलाया करते थे। इन दोनों कुत्तों को उन्होंने 19 वीं सदी में खोजी गई दो दवाइयों के नाम दे रखे थे। जैसाकि आप जानते होंगे, चेखफ़ पेशे से डॉक्टर थे। चेख़फ़ घण्टों अपने कुत्तों के साथ खेलते रहते और उनसे अपने मन की सारी बातें कहा करते थे। आज भी ’मेलिख़वा’ में बने चेख़फ़ संग्रहालय में उनके कुत्तों ब्रोम और हीना की काँस्य-मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं। यहाँ आयोजित किए जाने वाले ’ताक्स महोत्सव’ में भाग लेने के लिए हर साल पूरे रूस से ’ताक्स’ प्रजाति के कुत्ते मेलिख़वा आते हैं।
चेख़फ़ जब श्रीलंका की यात्रा पर गए तो वहाँ से वे एक नेवला ले आए। उनके दोनों कुत्ते उस नेवले से डरते थे और चेख़फ़ के शब्दों में ’उससे बचने की कोशिश’ करते थे। यह नेवला बहुत उपद्रवी था और अपने तीखे दाँतों से अपने सामने पड़ने वाली हर चीज़ को फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर देता था। फूलों के गमलों से खोद-खोदकर मिट्टी बाहर गिराने के अलावा इस नेवले को चेख़फ़ के पिता की बड़ी झालरदार दाढ़ी नोचने में भी बहुत मज़ा आता था।
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कवि मायकोवस्की को फ़्राँस की यात्रा करना बहुत पसन्द था। हर बार वहाँ से रूस लौटते हुए वे ढेरों शानदार उपहार लेकर आते थे। एक बार फ़्राँस से लौटते हुए वे अपने साथ एक फ़्राँसीसी बुलडॉग लेकर आए, जो उस समय रूसी लेखकों और कवियों के बीच बहुत लोकप्रिय था। इसके बाद मायकोवस्की अपने बुलडॉग ’बूल्का’ को अपनी हर यात्रा में अपने साथ रखते थे। उनके दोस्तों ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि अपने इस कुत्ते की वजह से उन्हें बहुत परेशानी होती थी। अक्सर उन्हें अपने मित्र-परिचितों के पास बूल्का को छोड़ना पड़ता था ताकि उसकी देखभाल होती रहे।
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नबोकफ़ के घर में कुत्तों की कई पीढ़ियाँ रहती थीं। नबोकफ़ की माँ को भूरे रंग के ताक्सा प्रजाति के कुत्ते बहुत पसन्द थे। बाद में नबोकफ़ ने भी हमेशा ताक्सा कुत्ते ही पाले। उनके पहले कुत्ते का नाम लूपु था। फिर उसके पिल्ले को ही उन्होंने पाल लिया, जिसका नाम उन्होंने ’बोक्स’ रखा था। उनके सबसे आख़िरी कुत्ते का नाम ’बोक्स द्वितीय’ था, जो अन्तोन चेख़फ़ की कुतिया हीना मार्कव्ना का पिल्ला था। ’बोक्स द्वितीय’ के साथ ही वे रूस छोड़कर प्राग में रहने के लिए चले गए थे। उनके साथियों ने बाद में उनके बारे में संस्मरणों में लिखा है कि वे अक्सर अपने कुत्ते के साथ बाहर घूमने के लिए निकलते थे और घूमते हुए उनका कुत्ता एक विशेष क़िस्म का ओवरकोट पहने होता था।
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ब्रोदस्की के साथ उनकी ज़्यादातर तस्वीरों में कोई न कोई बिल्ली दिखाई देती है। बिल्लियाँ सारी ज़िन्दगी ब्रोदस्की की साथी रहीं। ब्रोदस्की बिल्लियों को इतना ज़्यादा चाहते थे कि उनके बारे में समाज में तरह-तरह के चुटकुले बन गए थे। जैसे एक बार एक पत्रकार उनसे मिलने के लिए आया। बातचीत ख़त्म होने के बाद पत्रकार के प्रति अपना गहरा आदर व्यक्त करते हुए उन्होंने पत्रकार से कहा कि वे उन्हें अपनी प्रिय सोती हुई बिल्ली को जगाकर उससे मिलवा सकते हैं।
अपने एक इण्टरव्यू में उन्होंने कहा था — मैं एक बिलौटे की तरह हूँ। एकदम बिलौटे की तरह। बिलौटे को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि ’स्मृति’ नामक कोई संगठन है या नहीं। या सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी का कोई प्रचार-विभाग है या नहीं। उसके लिए सब बराबर है। अमरीका का राष्ट्रपति हो या न हो, उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। मैं भी एकदम इस बिलौटे की तरह ही हूँ।
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एक दिन कवि सिर्गेय येसेनिन ने सब्ज़ीमण्डी में अचानक एक काँपते हुए पिल्ले को देखा और उसे ख़रीद लिया। कुत्ते बेचने वाले आदमी ने उन्हें बताया कि यह कुत्ता बड़ी ऊँची प्रजाति का है। बस, कवि ने उस कुत्ते को अपना ही नाम दे दिया और प्यार से उसे सिर्योझ्का पुकारने लगे। येसेनिन इस कुत्ते को ख़रीदकर बहुत ख़ुश थे और हर आदमी को अपना वह कुत्ता दिखाते थे। कुछ दिन बाद वह कुत्ता किंकियाने लगा और अपने पंजों से अपने लम्बे-लम्बे कान खुजाने लगा। पता लगा कि यह तो सामान्य प्रजाति का देसी कुत्ता है और उसके कान इसलिए लटके हुए थे क्योंकि वे बँधे हुए थे।
लेकिन येसेनिन की कविताओं में कुत्तों का ज़िक्र अक्सर आता है और उनमें वे कुत्तों के प्रति लाड़ जताते हैं। अपने गाँव में रहकर येसेनिन हर पक्षी, हर गाय और घोड़े में जीवन की ख़ुशबू पाते थे और उनके प्रति अपने मन में बड़ी कोमलता और करुणा रखते थे। कुत्तों के सामने ही वे अक्सर अपनी कविताओं मेंं अपना दुखड़ा रोते हैं — जिम, अपना पंंजा दो मुझे, ताकि मुझे सुख मिले। येसेनिन की एक प्रसिद्ध कविता है — कुत्ते का गीत। इस कविता में कवि एक ऐसी कुतिया की दुःखद कहानी सुनाता है, जिसके पिल्ले खो गए हैं।
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अपनी बहुत-सी तस्वीरों में रूसी लेखक व्लदीमिर सरोकिन मशहूर व्हिपेट प्रजाति के कुत्तों के साथ दिखाई देते हैं। ये उनके प्रिय कुत्ते हैं, जिनके नाम हैं रोम और फ़ोम। सरोकिन ने बताया कि वे हमेशा जीवन्त सौन्दर्य से घिरे रहना चाहते हैं। उन्हें सुन्दर चीज़ें ही पसन्द हैं। वे कहते हैं — मुझे अपने चारों ओर सुन्दर वातावरण पसन्द है। वे बार-बार यह बात दोहराते हैं कि वे प्रसिद्ध लेखक फ़्योदर दस्ताएवस्की के इस मशहूर कथन से पूरी तरह सहमत हैं — मैं फ़्योदर मिख़ाइलाविच को थोड़ा-सा और सुन्दर बना देता। आख़िर सौन्दर्य ही दुनिया को बचाता है।
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व्यंग्यात्मक जासूसी उपन्यास लिखने वाली रूस की लोकप्रिय लेखिका दार्या दन्त्सोवा हमेशा अपनी पाठिकाओं की तुलना पग्स प्रजाति के कुत्तों से करती हैं। आजकल हर साल उनके कई-कई नए उपन्यास बाज़ार में उतरते हैं और रूसी पाठिकाओं के झोलों में समा जाते हैं। उनके इन हलके-फ़ुलके उपन्यासों के कवर पर उनकी जो तस्वीर छपी होती है, उसमें वे अपने पग्स कुत्तों से घिरी दिखाई देती हैं। यहाँ तक कि शहर के बाहर बने अपने महलनुमा बंगले को भी वे ’पग्स हाउस’ कहती हैं। वे बताती हैं कि उनके घर में हर चीज़ पर पग्स कुत्तों की तस्वीरें बनी हुई हैं। उनके पास पग्स की तस्वीरों वाले हज़ारों सुविनियर हैं, जिनमें लैम्पों और पर्दों से लेकर कम्बलों तक सब तरह की चीज़ें हैं।