शंघाई सहयोग संगठन (शंसस) पिछले 16 साल से यूरेशिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज कज़ाख़स्तान की राजधानी अस्ताना में शंसस का शिखर-सम्मेलन हो रहा है। इस शिखर सम्मेलन में क्षेत्रीय सम्पर्क को मजबूत बनाने की ओर विशेष ध्यान दिया जाएगा तथा भारत और पाकिस्तान को शंसस में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया जाएगा।
अभी तक शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों में से ज़्यादातर सदस्यों ने ’एक पट्टी, एक सड़क’ नामक चीन की पहल का समर्थन किया है। चीन ने शंसस के सदस्यों के बीच आपसी सम्पर्क सूत्र की नीति को अपनाते हुए प्राचीन रेशमी मार्ग पर एक ऐसी सड़क बनानी शुरू कर दी है, जो शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों से होकर गुज़रेगी और उन्हें आपसी व्यापारिक सहयोगी के रूप में एक-दूसरे से जोड़ देगी।
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15 जून 2001 को शंसस की स्थापना के बाद उसे एक सफल संगठन बनाने के लिए गम्भीर प्रयास किए गए हैं। शंसस के प्रमुख दस्तावेज़ों के अनुसार, यह एक ऐसा संगठन है, जो आपसी बातचीत, क्षेत्रीय शान्ति और सुरक्षा को प्राथमिकता देता हैं।
शंघाई सहयोग संगठन (शंसस) के महत्व और उसके लगातार बढ़ते हुए प्रभाव के कारण उसका विस्तार करना अनिवार्य हो गया है। हालाँकि पिछले कई सालों से यह कहा जाता रहा है कि शंसस अभी अपने विस्तार के लिए तैयार नहीं है, लेकिन फिर भी जुलाई 2015 में रूस के उफ़ा नगर में आयोजित शंसस के शिखर सम्मेलन के दौरान भारत और पाकिस्तान को संगठन का पूर्ण सदस्य बनने के लिए आमन्त्रित किया गया।
इस फ़ैसले से मालूम हुआ कि शंसस के कार्यक्रम में शंसस के विस्तार को आवश्यक माना जा रहा है। वैश्विक राजनीति से जुड़े अनेक मुद्दों पर और सुरक्षा से जुड़ी क्षेत्रीय चिन्ताओं पर भारत और शंसस के नज़रिए एक जैसे हैं। इसीलिए भारत और पाकिस्तान लम्बे समय से शंसस का पूर्ण सदस्य बनने की कोशिश कर रहे थे।
भारत और पाकिस्तान को शंसस का पूर्ण सदस्य बनाकर क्षेत्रीय एकीकरण की प्रक्रिया पर ज़ोर दिया जा रहा है और शंसस की भूमिका और उसके प्रभाव को भी बढ़ाया जा रहा है। उम्मीद है कि शंसस के पूर्ण सदस्य बनने के बाद भारत और पाकिस्तान की भूमिका भी दुनिया में और अधिक प्रभावशाली हो जाएगी तथा दुनिया के इस इलाके में स्थिरता पैदा हो जाएगी।
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भारत और ईरान दोनों ही देशों को रूस शंसस का पूर्ण सदस्य बनाने का प्रबल समर्थक रहा है। हालांकि अभी सिर्फ़ भारत और पाकिस्तान को ही शंसस का पूर्ण सदस्य बनाया जा रहा है। भारत और पाकिस्तान, दोनों ही देश परमाणु महाशक्तियाँ हैं और दोनों के बीच आपसी मनमुटाव बना रहता है, इसलिए उन्हें शंसस की पूर्ण सदस्यता देने के सवाल पर शंसस के कुछ सदस्य देश चिन्तित भी थे। उनका कहना था कि भारत और पाकिस्तान शंसस का सदस्य बनने के बाद अपने विवाद शंसस में भी ले आएँगे और इस तरह शंसस का असर कम होगा।
इसके जवाब में यह तर्क दिया जा सकता है कि शंसस के वर्तमान कुछ सदस्यों के बीच भी आपसी विवाद और मतभेद हैं, लेकिन उनसे तो शंसस की भूमिका और प्रभाव में कोई दिक़्क़त पैदा नहीं हो रही है। शंघाई सहयोग संगठन के चार्टर के अनुसार, भारत और पाकिस्तान शंसस के मापदण्डों पर खरे उतरते हैं और इन दोनों को अस्ताना में हो रहे शिखर सम्मेलन में शंसस का पूर्ण सदस्य बना लिया जाएगा। इस ऐतिहासिक निर्णय से शंसस का दुनिया में प्रभाव बढ़ेगा और विभिन्न दिशाओं में उसकी क्षमताओं में वृद्धि होगी।
शंघाई सहयोग संगठन के सभी सदस्य देशों के साथ भारत के बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं, इसलिए भविष्य में सभी देशों के साथ सहयोग की उज्ज्वल संभावनाएँ हैं। पूर्ण सदस्य के रूप में भारत को शंसस में शामिल किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम होगा। भारत लगातार शंसस में और अधिक रचनात्मक और सार्थक भूमिका निभाने की इच्छा रखता है। भारत का आर्थिक विकास, उसकी जनसंख्या में युवकों की बड़ी संख्या और इस क्षेत्र में अपने बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के कारण भारत शंसस के विकास में भी बड़ा योग देगा।
शंसस धीरे-धीरे अपने महत्वाकांक्षी आर्थिक एकीकरण के कार्यक्रम को साकार कर रहा है। शंसस के सदस्य देशों के भीतर माल, सेवाओं और तकनीकों की आपसी मुक्त आवाजाही के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना के नियम बनाए जा रहे हैं। भारत यूरेशियाई आर्थिक संघ के साथ भी मुक्त व्यापार समझौता करना चाहता है ताकि उसके सदस्य देशों में भारत मुक्त रूप से व्यापार कर सके और उसके तैयार मालों, कच्चे मालों, पूंजी और प्रौद्योगिकी का आसानी से आवागमन हो सके। हाल ही में रूस और भारत के बीच बनाए गए नए रेलमार्ग (जिसे अन्तरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारा नाम दिया गया है) से भी भारत को शंसस के सदस्य देशों में व्यापार करने और उनके साथ आर्थिक सहयोग करने में बहुत सुविधा होगी।
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उम्मीद है कि प्रस्तावित चाबहार परियोजना भी भारत को दक्षिण कोहकाफ़ और रूस के साथ-साथ मध्य एशियाई देशों तक पहुँचने की संभावना उपलब्ध कराएगी। इस तरह भारत और शंघाई सहयोग संगठन के बीच सम्बन्ध मजबूत होंगे तो भारत को इस इलाके देशों में अपना व्यापार बढ़ाने और निवेश के अवसर बढ़ाने की संभावना मिलेगी।
शंघाई सहयोग संगठन (शंसस) और भारत दोनों ही यह चाहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान और उसके आसपास आतंकवादियों ने अपना जो नेटवर्क बना लिया है, वह ख़त्म हो जाए। भारत और शंसस के सदस्य देशों के लिए अफ़ग़ानिस्तान में अड्डा बनाने वाले आतंकवादी एक महत्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती बने हुए हैं। शंसस के साथ-साथ भारत भी इस क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर बेहद चिन्तित है।
अब भारत और शंसस के सभी सदस्य देश अफ़ग़ानिस्तान में मिलकर काम कर सकेंगे। वैसे भी शंसस के ज़्यादातर सदस्य देशों की सीमाएँ अफ़ग़ानिस्तान से लगी हुई हैं, इसलिए शंसस के लिए यह ज़रूरी है कि अफ़ग़ानिस्तान में शान्ति और स्थिरता बनी रहे। इसलिए शंसस इस दिशा में भारत से मिलने वाले सहयोग को पाकर ख़ुश ही होगा। इसके अलावा भारत अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे पुनर्निर्माण और सहायता कार्यक्रमों में एक प्रमुख निवेशक और वित्तीय सहयोगी भी है।
शंघाई सहयोग संगठन के साथ मिलकर भारत सँयुक्त रूप से क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी व्यवस्था में काम करेगा। शंसस के सचिवालय के बाद यह शंसस की सबसे महत्वपूर्ण संस्था है। यह संस्था आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविरों के संचालन और उन्हें वित्तीय समर्थन देने वाले संगठनों और लोगों से जुड़ी जानकारियों का आदान-प्रदान करती है। इस आतंकवाद विरोधी व्यवस्था के सभी कर्मचारी और अधिकारी शंसस के सदस्य देशों के नागरिक हैं। रूस और चीन सहित शंसस के सभी सदस्य देश इस संस्था के खभी खर्च मिलकर उठाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों का विस्तार हुआ है।
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अब यह संस्था शंसस के सदस्य देशों में आतंकवादी विरोधी कानूनों को सुसंगत बना रही है और उनमें एकरूपता ला रही है। यह संस्था आतंकवादियों के खिलाफ़ लड़ने और उन्हें वित्तीय समर्थन देने वाले संगठनों पर नज़र रखने और उन्हें नेस्तानाबूद करने का काम करती है। अब इस संस्था के सहयोग से आतंकी संगठनों के नेटवर्क और साइबर सुरक्षा से जुड़ी खुफिया जानकारियों तक भारत की भी पहुँच हो जाएगी। क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी व्यवस्था का संचालन करने वाली यह संस्था अपनी गतिविधियों की रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र सहित विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय संगठनों को देती है।
इस संस्था के माध्यम से शंसस इस इलाके में सक्रिय विभिन्न आतंकवादी संगठनों के खिलाफ लड़ने की कोशिश कर रहा है। शंघाई सहयोग संगठन का पूर्ण सदस्य बनकर भारत रूस और चीन जैसे शंसस के दो प्रमुख देशों के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रख सकेगा।
निवेदिता दास कुण्डू ने ’अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्ध’ विषय में पीएच०डी० की है। उनकी किताब का नाम है — यूरेशिया में भारत का बढ़ता हुआ सहयोग : नए क्षेत्रवाद की रणनीतियाँ। वे शंसस के घटनाक्रम पर नज़र रखती हैं और शंसस के विभिन्न सम्मेलनों और सेमिनारों में हिस्सा लेती रहती हैं।
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