रूस का रक्षा मन्त्रालय कभी भी सार्वजनिक रूप से उन समुद्री जीवों की चर्चा नहीं करता, जो उसके लिए काम करते हैं। रूसी सैन्य-अधिकारी भी इस सवाल पर बात करना पसन्द नहीं करते। जैसे इस तरह का कोई मत्स्य सैन्य-दस्ता रूसी सेना में है ही नहीं। लेकिन रूस के उत्तरी इलाके में बसे मूर्मन्स्क नगर में और क्रीमिया के सिवस्तोपल ज़िले में समुद्री जीवों को सैन्य-प्रशिक्षण देने वाले दो अत्यन्त गुप्त केन्द्र बने हुए हैं। मूर्मन्स्क में ’समुद्री जैविक संस्थान’ में और सिवस्तोपल में ’समुद्र अनुसन्धान व शोध संस्थान’ में समुद्री जीवों के कमाण्डो-दस्ते तैयार किए जाते हैं।
पिछले साल रूस के रक्षा मन्त्रालय ने सरकारी ख़रीद के बारे में जानकारी देने वाली वेबसाइट पर बॉटलनोस डॉल्फ़िन मछलियों को ख़रीदने के बारे में एक निविदा जारी की थी। लेकिन उस निविदा में रूस के रक्षा मन्त्रालय का नाम कहीं नहीं था क्योंकि रूसी कानूनों के अनुसार, रूस का रक्षा मन्त्रालय ख़ुद एक कील भी नहीं ख़रीद सकता है। इसके बाद रक्षा मन्त्रालय ने पाँच डॉल्फ़िन मछलियाँ ख़रीदी थीं, जिनमें से दो मादा डॉल्फ़िनें थीं और तीन नर डॉल्फ़िन मछलियाँ। इन सभी की उम्र तीन से पाँच वर्ष की थी। हर मछली के लिए रक्षा मन्त्रालय ने साढ़े तीन लाख रूबल यानी करीब चार लाख रुपए चुकाए थे।
Pierre G. Georges/U.S. Navy
रूस-भारत संवाद से बात करते हुए रूस की विज्ञान अकादमी के दक्षिणी अनुसन्धान केन्द्र में समुद्री जीवों को सैन्य-प्रशिक्षण देने के तरीके बनाने वाले विशेषज्ञ गेन्नदी मतिशोफ़ ने बताया — सोवियत संघ के ज़माने से ही रूस में सैन्य उद्देश्यों से समुद्री जीवों का इस्तेमाल किया जाता रहा है।
मतिशोफ़ ने बताया — इन मछलियों की मुख्य ज़िम्मेदारी समुद्री नौसैनिक अड्डे की सुरक्षा करना है, ताकि पानी के भीतर से दुश्मन के घुसपैठिए दस्ते नौसैनिक अड्डों में न घुस पाएँ। बॉटलनोस डॉल्फ़िन मछलियाँ नौसैनिक अड्डों के प्रवेश-द्वार के पास गश्त लगाती रहती हैं और ज्यों ही कोई घुसपैठिया दिखाई देता है, वे पहले संचालन केन्द्र को इसकी जानकारी देती हैं और फिर वहाँ से आदेश मिलने पर ख़ुद ही शत्रु-घुसपैठियों को नष्ट कर देती हैं। इसके लिए इन डॉल्फ़िन मछलियों के मुँह पर कुदालनुमा एक विशेष उपकरण बँधा होता है।
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इसके अलावा समुद्री जीवों को तारपीडो, बारुदी सुरंगें और 120 मीटर की गहराई तक छुपा हुआ अन्य प्रकार का सैन्य गोला-बारूद ढूँढ़ने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
रणनीतिक मिसाइल ’तोपल-एम’, ’यार्स’ और ’बुलवा’ के निर्माता वलिन्तीन स्मिरनोफ़ ने रूस-भारत संवाद को बताया कि पिछली सदी के नौवें दशक के शुरू में पोतनाशक मिसाइल ’मिदवेदका’ के एक परीक्षण के दौरान अचानक वह तारपीडो-मिसाइल गायब हो गया। लक्ष्य के क़रीब पहुँचकर अपने टेलीमेटरी उपकरणों के साथ पानी में तैरते रहने की जगह यह तारपीडो पानी में डूब गया था।
तब गोताखोरों ने इस मिसाइल की बहुत खोज की, लेकिन समुद्र में पड़े तरह-तरह के कबाड़ के बीच वे उसे खोजने में असफल रहे। इस नवीनतम तारपीडो को समुद्र में यूँ ही छोड़ देना सम्भव नहीं था क्योंकि डिजाइनरों को उच्चाधिकारियों के सामने जवाब देना पड़ता। तभी उनके किसी सहयोगी ने एक मछलीघर को फ़ोन करके उससे सहायता माँगने का प्रस्ताव रखा।
Табита / Архивные фотографии ММБИ
अपने संस्मरणों में वलिन्तीन स्मिरनोफ़ लिखते हैं कि तब बहुत से लोग इस प्रस्ताव को सुनकर हँसने लगे थे। लेकिन तारपीडो-मिसाइल के डिजाइनरों के सामने और कोई चारा नहीं था। उन्होंने यह कोशिश करके देखने का भी फैसला कर लिया और वे यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि मछलीघर की पालतू डॉल्फ़िन मछली ने कुछ ही मिनट के भीतर उस तारपीडो को ढूँढ़ निकाला। यही नहीं डॉल्फ़िन ने तो उस तारपीडो को उठाने के लिए लोहे की रस्सी में तारपीडो को फँसाने में भी कर्मियों की सहायता की।
स्मिरनोफ़ यह नहीं समझ पाए कि डॉल्फ़िन ने यह खोज कैसे की।
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इसके बाद ऐसे बॉटलनोस डॉल्फ़िन कमाण्डो सैन्य-दस्ते तैयार किए जाने लगे, जिन्हें हैलिकॉप्टर से समुद्र में कहीं भी उतारकर सैन्य-उद्देश्यों से उनका इस्तेमाल किया जा सकता था।
लेकिन सोवियत संघ के विघटन के बाद 1991 में रूसी सेना में समुद्री जीवों का इस्तेमाल बन्द कर दिया गया।
शुरू से ही न सिर्फ़ डॉल्फ़िन मछलियों बल्कि बेलुगा-व्हेल मछलियों को और उनके संवेदनशील जल-राडारों को प्राथमिकता दी गई थी।
रूसी नौसेना के अधिकारी बेलुगा-व्हेल मछलियों को गश्त लगाने के लिए नौसैनिक अड्डों के प्रवेश द्वार पर छोड़ना चाहते थे ताकि वे घुसपैठियों को ढूँढ़कर उनके बारे में जानकारी दें। इसके बाद संचालन केन्द्र विशेष प्रशिक्षण प्राप्त हत्यारी सील मछलियों को वहाँ भेजेगा और वे घुसपैठियों को ख़त्म कर देंगी।
लेकिन सोवियत संघ के ज़माने में ऐसा कोई उपकरण नहीं था जो समुद्र के भीतर की ठीक-ठीक स्थिति की जानकारी दे पाता। इसके अलावा बेलुगा-व्हेल मछलियाँ भी उत्तरी नौसैनिक बेड़े की सुरक्षा का काम ढंग से करने में असफल रहीं। इसके बाद बेलुगा-व्हेल का इस्तेमाल बन्द कर दिया गया और सेना सील मछलियों के इस्तेमाल पर ही ध्यान देने लगी।
अब सील मछलियों, चक्राकार सील मछलियाँ और समुद्री खरगोशों का इस्तेमाल बारूदी सुरंगों को ढूँढ़ने और समुद्र की तली से किसी चीज़ को उठाने के लिए ही किया जाता है। गेन्नदी मतिशोफ़ के अनुसार, मछलियों को बस, वह चीज़ दिखानी होती है और वे उसे जल्दी ही ढूँढ़ निकालती हैं।
उन्होंने कहा — ये मछलियाँ गोताखोरों की भी ख़ूब सहायता करती हैं। उनके लिए उपकरण लाती-ले जाती हैं और समुद्री घुसपैठियों के हमलों से उनकी सुरक्षा करती हैं।
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