आज रूस के स्कूलों में कोर्स में लगी किताबों में लेफ़ तलस्तोय का उपन्यास ’युद्ध और शान्ति’ एक सबसे मुश्किल उपन्यास माना जाता है। इसका कारण सिर्फ़ यही नहीं है कि इस उपन्यास के मोटे-मोटे चार खण्ड हैं, जो बच्चों को पढ़ने पड़ते हैं। मस्क्वा (मास्को) के 23 वर्षीय एक निवासी अलिक्सेय ने बताया — जब मैंने ’युद्ध और शान्ति’ को खोलकर देखा तो मैंने पाया कि क़रीब-क़रीब आधा उपन्यास फ़्राँसीसी भाषा में लिखा हुआ है। तब मैंने सोचा कि मैं इस उपन्यास का सारांश ही पढ़ लेता हूँ। वही काफ़ी होगा।
सचमुच, रूस के अभिजन समाज और विशिष्ट वर्ग को अपने घर बुलाकर साहित्यिक सन्ध्याओं का आयोजन करने वाली आन्ना पावलव्ना शेरेर के घर में हो रही एक बैठक के वर्णन से ’युद्ध और शान्ति’ नामक यह उपन्यास शुरू होता है और इस बैठक में ज़्यादातर बातचीत फ़्राँसीसी भाषा में हो रही है। यह कोई लेखक की कल्पना नहीं थी, बल्कि उन्नीसवीं सदी के शुरू में रूस का जीवन ही ऐसा था।
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इस उपन्यास के पहले खण्ड में सन् 1805 का समय दिखाया गया है। एक पात्र के बारे में बताते हुए लेखक तलस्तोय कहते हैं — वह बड़ी ख़ूबसूरत फ़्राँसीसी भाषा बोल रहा था। हमारे बाप-दादा न केवल यह भाषा बोला करते थे, बल्कि इसी भाषा में सोचा भी करते थे। अट्ठारहवीं सदी में रूस में फ़्राँसीसी भाषा का बोलबाला था। रूस का अभिजात वर्ग आपस में यही भाषा बोला करता था। परन्तु सवाल उठता है कि ऐसा क्यों था?
1682 से 1725 तक रूस में रमानफ़ राजवंश के तीसरे ज़ार प्योतर महान् का शासन था। उनके शासनकाल में ही रूस में कई बड़े बदलावों की शुरूआत हुई। प्योतर महान् चाहते थे कि रूस भी यूरोप की एक महाशक्ति बन जाए और उन्होंने इसके लिए रूस की राह भी बदल दी। उन्होंने रूस के जीवन के ढर्रे को पूरी तरह से बदल डाला। रूस में चल रहे पितृसत्तात्मक ढाँचे को नष्ट करके उन्होंने पुराने रूस में एक नई शुरूआत की।
उन्होंने रूस के अभिजन वर्ग को अपनी दाढ़ियाँ कटवाने के लिए मजबूर किया। प्योतर ने उन्हें पश्चिमी सूट पहनने और पश्चिमी जीवन-शैली अपनाने को बाध्य किया और उनसे कहा कि वे रहन-सहन का नया ढंग सीखने के लिए यूरोप जाएँ। इसी का परिणाम यह हुआ कि अट्ठारहवीं सदी में रूस का कुलीन वर्ग विदेशी भाषा में ही बात किया करता था।
उस समय पूरे यूरोप में फ़्राँसीसी भाषा का भारी असर था। फ़्राँसीसी भाषा पूरे यूरोप में बोली जाती थी। भाषा-मनोवैज्ञानिक और अनुवादक दिमित्री पित्रोफ़ बताते हैं — फ़्राँसीसी भाषा यूरोप की पहली भाषा इसलिए बन गई क्योंकि सबसे पहले उसी में व्याकरण की अवधारणाएँ पैदा हुई थीं। और इसका कारण यह रहा कि 1635 में फ़्राँस के प्रधानमन्त्री (पहले मन्त्री) कार्डिनल रिशेल्यो ने फ़्राँस में एक भाषा अकादमी बना दी थी, जो फ़्राँसीसी भाषा बोलने के नियम तय किया करती थी। इसके बाद ही फ़्राँसीसी भाषा लातीनी को पीछे छोड़कर अन्तरराष्ट्रीय सम्पर्क की भाषा बनती चली गई।
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फिर 1789 से 1799 के बीच महान् फ़्राँसीसी क्रान्ति हुई। इस क्रान्ति के दौरान देश में लगातार विद्रोह होते रहे, जिनसे घबराकर फ़्राँसीसी अभिजात वर्ग के प्रतिनिधि अन्य देशों में भागने लगे। तब फ़्राँसीसी अभिजात वर्ग के 15 हज़ार से ज़्यादा लोग भागकर रूस भी आए थे और उन्होंने रूस में शरण ले ली थी। रूसी अभिजात वर्ग के बीच इस वजह से भी फ़्राँसीसी भाषा के प्रचार-प्रसार में सहायता मिली।
रूस की तात्कालिक सरकार किसी भी तरह की क्रान्ति को तब सन्देह की नज़रों से देखा करती थी, इसलिए उसने फ़्राँसीसी राजतन्त्र के समर्थकों को शरण देना और अपने यहाँ नौकरियाँ देना शुरू कर दिया। प्रसिद्ध फ़्राँसीसी कार्डिनल के वंशज अरमान-एमानुएल दे रिशेल्यो को रूस के ज़ार ने तब ओदेस्सा नगर का नगरप्रमुख बना दिया। आज यह ओदेस्सा नगर उक्रईना में शामिल है। बहुत से फ़्राँसीसी लोग तब रूस के अमीर परिवारों में गवेर्नेस की नौकरी करने लगे तथा बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। वे रूसी अभिजात वर्ग के बच्चों को यूरोपीय नृत्य और शिष्टाचार सिखाते थे, उन्हें तलवारबाज़ी सिखाते थे या घुड़सवारी सिखाया करते थे।
तलस्तोय से बहुत पहले ही रूस के कई लेखकों ने यह बात नोट कर ली थी कि रूसी अभिजात वर्ग में फ़्राँसीसी भाषा का रुतबा बढ़ता जा रहा है। रूस में इस सवाल पर गरमा-गरम बहसें और चर्चाएँ होने लगी थीं। बहुत से लोगों का मानना था कि फ़्राँसीसी भाषा के आने से रूसी संस्कृति समृद्ध हो रही है और रूसी भाषा अधिक सम्पन्न हो रही है। लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग थे, जो रूसी भाषा और संस्कृति पर फ़्राँसीसी भाषा के संस्कारों और प्रभुत्व का विरोध कर रहे थे। रूस के तत्कालीन शिक्षामन्त्री अलिक्सान्दर शिशकोफ़ रूसी भाषा के समर्थक थे और उनका मानना था — इस तरह तो हम अपनी मातृभाषा को पूरी तरह से नष्ट कर देंगे।
लेखक अलिक्सान्दर ग्रिबाएदफ़ ने अपने कामदी नाटक ’अक़्ल का मातम’ (1825) में उन रूसी लोगों की हँसी उड़ाई है, जो फ़्राँसीसियों की हर बात पर सिर झुकाने लगते हैं, जबकि ख़ुद ठीक से फ़्राँसीसी बोलना भी नहीं जानते। मस्क्वा (मास्को) के पूर्व में 401 किलोमीटर दूर स्थित नीझनी नोव्गरद नगर की भाषा और फ़्राँसीसी भाषा के मेल से पैदा होने वाली खिचड़ी भाषा मज़ाक उड़ाते हुए उन्होंने लिखा था — कितनी हँसोड़ बन जाती है नीझनी नोव्गरद की स्थानीय भाषा से मिलकर यह फ़्राँसीसी भाषा।
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लेकिन फिर भी उस समय रूस का सारा कुलीन वर्ग आपस में एक-दूसरे से फ़्राँसीसी भाषा में ही बात किया करता था। तब रूस में फ़्राँसीसी को एक सभ्य भाषा माना जाता था, जो शिष्ट, सभ्य और संस्कारवान लोग ही बोल पाते थे। रूस के विश्व प्रसिद्ध कवि और आधुनिक रूसी भाषा की संस्थापक माने जाने वाले अलिक्सान्दर पूश्किन की रचनाओं के विशेषज्ञों का कहना है कि तब पूश्किन ने महिलाओं के नाम जितने पत्र लिखे थे, उनमें से 90 प्रतिशत पत्र उन्होंने फ़्राँसीसी भाषा में लिखे थे।
नेपोलियन के साथ हुई लड़ाइयों के दौरान, जब रूस और फ़्राँस एक-दूसरे के ख़िलाफ़ थे और आपस में युद्ध कर रहे थे, रूस में फ़्राँसीसी भाषा की लोकप्रियता कम हो गई। उन दिनों रूस में राष्ट्रीय भावनाओं का उभार ज़ोरों पर था। इसलिए रूस के अभिजन समाज ने भी फ़्राँसीसी भाषा का बहिष्कार करके रूसी भाषा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। कभी-कभी तो उन्हें अपने जीवन की सुरक्षा करने के लिए फ़्राँसीसी की जगह रूसी भाषा ही बोलनी पड़ जाती थी।
1812 के रूस-फ़्राँस युद्ध के एक सहभागी, रूसी कवि दिनीस दवीदफ़ ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि रूसी किसान और सैनिक फ़्राँसीसी भाषा नहीं जानते थे और युद्ध के दौरान वे रूसी कुलीन वर्ग के सैनिक अफ़सरों को फ़्राँसीसी भाषा बोलते देखकर उन्हें शत्रु सेना का अफ़सर समझ लेते थे। रूसी कुलीन वर्ग के इन सैनिक अफ़सरों का रूसी भाषा का उच्चारण भी विदेशियों की तरह ही होता था, इसलिए रूसी सैनिक अपने ही अफ़सरों पर गोली चलाने और उन्हें मारने की कोशिश करते थे।
धीरे-धीरे रूस में फ़्राँसीसी भाषा की लोकप्रियता समाप्त हो गई और इसके साथ ही फ़्राँसीसी भाषा के प्रति रूस के कुलीन वर्ग की सनक भी ख़त्म हो गई। रूसी भाषा में अट्ठारहवीं सदी में जिन फ़्राँसीसी शब्दों और वाक्यों की भरमार हो गई थी, वे शब्द और वाक्य भी धीरे-धीरे भुला दिए गए।
लेकिन फिर भी बहुत से विदेशी शब्द आज भी रूसी भाषा में इस्तेमाल किए जाते हैं जैसे – अफ़ीशा (पोस्टर), प्रेस्सा (प्रेस या मीडिया), शर्म (आकर्षण), कवाल्येर (अनुरागी या विभूषित) आदि। रूसी लोग इन शब्दों के इतने आदी हो गए हैं कि उन्हें ये शब्द रूसी शब्द ही लगते हैं। लेखक प्योतर वायल का मानना है — रूसी भाषा में वे ही विदेशी शब्द बाक़ी रह गए, जिनकी रूसी भाषा को वास्तव में ज़रूरत थी। अन्य भाषाओं से रूसी भाषा में आने वाले दूसरे विदेशी शब्दों का भी यही हाल होगा।
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