पिछली सदी के सातवें दशक में जब भारत में औद्योगीकरण का महाभियान शुरू हुआ, तो देश की ऊर्जा ज़रूरतें बहुत बढ़ गई थीं। उस समय असम के डिगबोई तेल कुएँ को छोड़कर पूरे भारत में और कहीं पर खनिज तेल का उत्पादन नहीं हुआ करता था।
डिगबोई तेल कुएँ से भी बहुत कम मात्रा में कच्चा तेल मिलता था, जबकि भारत का खनिज तेल का आयात आसमान छू रहा था। भारत ने अपनी धरती में तेल की खोज करने के लिए पश्चिमी देशों के ऊर्जा विशेषज्ञों को नियुक्त किया, लेकिन उन्होंने आनन-फानन में भारत को ’तेल व गैस विहीन’ देश घोषित कर दिया। उनकी राय में भारत के विशाल भूभाग और समुद्रतटीय क्षेत्रों में तेल और गैस के भण्डार बिल्कुल नहीं थे।
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इसी बाद रूसी भूगर्भवेत्ताओं ने भारत में तेल की खोज शुरू की। 1964 से 1967 के बीच भूकम्प अनुसन्धान जलपोत ‘अकादेमिक अरख़न्गेल्स्की’ पर काम कर रहे रूसी तेल खोज दल ने भारत के पश्चिमी तटवर्ती इलाके में खम्भात की खाड़ी में काम शुरू किया। इस रूसी खोज दल के प्रयासों के कारण मुम्बई से 1 सौ 60 किलोमीटर दूर समुद्र में स्थित भारत के सबसे बड़े तेल व गैस भण्डार का पता लगा। 1974 में तट से दूर समुद्र के भीतर तेल का पहला कुआँ खोदा गया।
बाम्बे हाई — इस नामकरण को लेकर दो तरह की बातें सुनने को मिलती हैं।
अपतट इंजीनियरी व्यापार पत्रिका ‘सम्पदा’ में एन० रामलिंगम ने लिखा है कि ‘बाम्बे हाई’ नाम रूसी भूगर्भशास्त्री कलीनिन ने दिया था।
‘बिजलीविहीन: भारत में ऊर्जा की कमी तथा इसका प्रभाव' नामक पुस्तक के लेखक सैम ट्रानम ने तेल व प्राकृतिक गैस कोर (उस समय आयोग) के इंजीनियर एम० कृष्णमूर्ति का हवाला दिया है, जो अनुसन्धान जलपोत ’अकादेमिक अरख़न्गेल्स्की’ पर काम कर रहे थे।
एम० कृष्णमूर्ति ने बताया था — इस तेल भण्डार की खोज के बाद हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि इसका नाम क्या रखा जाए। आपस में विचार-विमर्श करने के बाद हमने इसका नाम 'बाम्बे हाई' रखने का फ़ैसला लिया क्योंकि इस नाम में एक लय थी और यह हमें सरलता से जुबान पर चढ़ जाने वाला भी लगा। उसके बाद हमने खुदाई जलपोत ‘सागर सम्राट’ की सहायता से 1974 में तट से दूर समुद्र में तेल के पहले कुएँ की खुदाई की।
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शहर का नाम मुम्बई होने पर इसका नाम भी बदलकर ‘मुम्बई हाई’ कर दिया गया।
पश्चिमी तट से दूर समुद्र के भीतर बाम्बे हाई और उसके बाद तेल व गैस के अन्य भण्डारों की खोज के कारण भारत में ऊर्जा का पूरा परिदृश्य ही बदल गया। 1998 में यहाँ का तेल उत्पादन 2 करोड़ मीट्रिक टन प्रति वर्ष के स्तर तक पहुँच गया, जो उस समय तक का सर्वाधिक आँकड़ा था। यहाँ के सबसे बड़े तेल कुएँ में 2030 तक 50 लाख मीट्रिक टन तेल उत्पादन होने की आशा है।
मुम्बई हाई उत्तर और दक्षिण नामक दो खण्डों में विभाजित है। इसके अन्तर्गत 551 से अधिक तेल कुएँ और 33 गैस कुएँ आते हैं। कुओं से समुद्र की सतह तक तेल, गैस तथा पानी को लाने - ले जाने के लिए समुद्र के भीतर पाइपलाइनों का 3 हजार किलोमीटर से भी अधिक लम्बा जाल बिछा हुआ है। इस समय इस भण्डार में 1 अरब 65 करोड़ 90 लाख मीट्रिक टन तेल मौजूद है और प्रति वर्ष लगभग 1 करोड़ 20 लाख मीट्रिक टन तेल का उत्पादन किया जा रहा है।
मुम्बई हाई में निकाले जाने वाला कच्चा खनिज तेल पूरी दुनिया के सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले तेलों में से एक है। उदाहरण के लिए, मुम्बई हाई के कच्चे खनिज तेल में पैराफ़िन का स्तर 60 प्रतिशत से भी अधिक होता है, जबकि अरब देशों में निकाले जाने वाले हल्के कच्चे खनिज तेल में पैराफ़िन की मात्रा केवल 25 प्रतिशत ही होती है।
तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग (ओ०एन०जी०सी०) अपनी इस पहली बड़ी सफलता से उत्साहित होकर जल्दी ही पूरे भारत भर में काम करने लगा। बाद के दशकों में तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग ने रूस सहित विदेशों में भी अपनी गतिविधियों का विस्तार किया। तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग ने अभी तक 5 अरब टन से भी अधिक मात्रा में तेल और गैस की खोज की है।
हालाँकि भारतीय तेल क्षेत्र में यह सबसे बड़ा अवसर अमरीका के हाथ में लगभग जाते-जाते रह गया। जब रूसी विशेषज्ञों ने सारा कठिन काम पूरा कर लिया, तो 1968 में अमरीका भारतीय पेट्रोलियम मन्त्रालय पर इस बात का दबाव बनाने लगा कि बाम्बे हाई का पट्टा अमरीका की एक बड़ी तेल कम्पनी ‘टेनेको’ को दे दिया जाय। टेक्सास स्थित टेनेको कम्पनी से तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति लिण्डन जानसन के व्यावसायिक हित जुड़े हुए थे, इसलिए अमरीकी राष्ट्रपति भवन इस काम में खूब दिलचस्पी दिखा रहा था।
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भारतीय पेट्रोलियम सूचना सेवा के पूर्व प्रमुख शैलेन्द्र नाथ घोष ने लिखा है कि तत्कालीन पेट्रोलियम मन्त्री अशोक मेहता की राय में स्वदेशी प्रयासों द्वारा समुद्र के भीतर तेज की खोज करना सम्भव नहीं था। अनेक सांसदों का ही नहीं, बल्कि योजना आयोग का भी मानना था कि समुद्र के भीतर खुदाई करना जुआ खेलने के समान है और इसमें फ़ालतू पैसा खर्च होता है, जिसका बोझ सिर्फ़ बहुत अमीर देश ही उठा सकते हैं।
शैलेन्द्र नाथ घोष ने लिखा है — सिर्फ़ तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग के भूभौतिकी निदेशालय के एक उपनिदेशक को छोड़कर तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग के बाक़ी सभी वैज्ञानिक भी इस बात से पूरी तरह सहमत थे। अतः अशोक मेहता ने टेनेको के साथ समझौते का एक प्रारूप तैयार किया और मन्त्रिमण्डल के पास अनुमोदन के लिए भेज दिया। उन्हें लग रहा था कि उनके इस प्रारूप को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल बड़ी आसानी से अनुमोदित कर देगा।
हालाँकि उनसे पहले के तेलमन्त्री केशव देव मालवीय ने आत्मनिर्भरता की एक कार्ययोजना लागू कर दी थी, जिसकी उपेक्षा करना आसान नहीं था। 1961 में पेट्रोलियम सूचना सेवा की स्थापना के समय उन्होंने अपने अधिकारियों से कहा था — आर्थिक आज़ादी की लड़ाई पेट्रोलियम के मोर्चे पर लड़ी जा रही है। मुझे आप सबकी सहायता चाहिए। इस संगठन का प्रभार ग्रहण कीजिए और जैसा आप चाहते हैं, इसे उस तरह से खड़ा कीजिए। केशव देव मालवीय ने सरकारी कम्पनियों यानी तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग, भारतीय शोधनशाला लिमिटेड और इण्डियन आयल को निर्देश दिया कि वे पेट्रोलियम सूचना सेवा का वित्तीय बोझ तो उठाएँ, किन्तु उसके काम में कोई हस्तक्षेप न करें।
टेनेको के साथ समझौता करने सम्बन्धी पेट्रोलियम मन्त्रालय का प्रस्ताव जब प्रधानमन्त्री सचिवालय में पहुँचा, तो प्रधानमन्त्री सचिवालय के प्रधान सचिव पी० एन० (परमेश्वर नारायण) हक्सर ने शैलेन्द्र नाथ घोष को उनकी राय लेने के लिए बुलाया।
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शैलेन्द्र नाथ घोष ने बताया — कुछ भूभौतिकशास्त्रियों ने मुझे एक जोख़िम के बारे में बताया था। मैंने हक्सर से उस जोख़िम की चर्चा की। पट्टा लेने वाली विदेशी खोज कम्पनी से हमारी सामुद्रिक स्थिति और क्षमताएँ छुपी नहीं रह सकेंगी। उन्हें पता चल जाएगा कि कितने अक्षांश-देशान्तर पर, किस मौसम में और दिन या रात में किस दौर में पनडुब्बियाँ किसी विशेष क्षेत्र में प्रवेश करके हमारी आँखों से लगातार कई दिनों तक ओझल बनी रह सकती हैं। यह अपने आप में सचमुच बहुत बड़ा सामरिक खतरा था। श्री हक्सर पर मेरी इन बातों का काफ़ी अच्छा प्रभाव पड़ा।
उन्होंने कहा — इसमें राजनीतिक रूप से भी काफ़ी बड़ा जोख़िम है। हम लीबिया की तरह कोई छोटे-मोटे देश नहीं हैं। यदि हम अमरीकी कम्पनी को पट्टा देंगे, तो सोवियत गुट उसका यही अर्थ निकालेगा कि हमारा रुझान अमरीकी गुट की ओर हो रहा है।
मीडिया जगत और वैज्ञानिकों के बीच इस मुद्दे पर बहस होने लगी। अप्रत्याशित रूप से इस बार भी रूस की ही एक कार्रवाई हमारे लिए सहायक सिद्ध हुई। चेकोस्लोवाकिया में सोवियत संघ द्वारा किए गए हस्तक्षेप के मुद्दे पर भारत के चुप रहने की निन्दा करने के बाद तत्कालीन पेट्रोलियम मन्त्री अशोक मेहता ने त्यागपत्र दे दिया। अब त्रिगुण सेन को पेट्रोलियम मन्त्री बनाया गया। शैलेन्द्र नाथ घोष ने कहा — इसके बाद बाम्बे हाई में तेल की खोज को लेकर शीघ्र ही सकारात्मक कदम उठाए गए।
सबसे पहले ताप्ती नदी के छिछले पानी में जल के भीतर खुदाई का अभ्यास किया गया। कुछ अनुभव होने पर जब अपने ऊपर विश्वास बढ़ा, तो तट से दूर समुद्र के भीतर बाम्बे हाई क्षेत्र में खुदाई शुरू की गई और 1974 में जाकर यहाँ पर तेल का पता भी लग गया।
शैलेन्द्र नाथ घोष ने बताया — यह अभियान तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग के बहादुर भूवैज्ञानिकों (जिसमें भूगर्भशास्त्री, भूभौतिकविद, भूरसायनज्ञ शामिल थे), वेधकों, उत्पादन व पाइपलाइन इंजीनियरों और उनके सहायक सेवा प्रदाताओं, विशेषकर वर्कशापों में कार्यरत यान्त्रिक इंजीनियरों तथा मिस्त्रियों की कोशिशों और उनके काम की महागाथा थी। तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग की इस साहसिक पहल के कारण एक विश्वस्तरीय तेल खोजक के रूप में सारी दुनिया में उसकी ख्याति हो गई।
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