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आधा रूस पूतिन को फिर से राष्ट्रपति चुनने के लिए तैयार

अगर मार्च 2018 की जगह रूस में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान आने वाले सप्ताहन्त में ही होता, तो रूस के 48 प्रतिशत मतदाता व्लदीमिर पूतिन को ही अपना वोट देते। विगत 2 मई को रूसी जनसर्वेक्षण केन्द्र ’लवादा सेन्त्र’ ने सर्वेक्षण के जो परिणाम घोषित किए हैं, उनसे यह अनुमान सामने आया है। ’लवादा सेन्त्र’ ने इस जनसर्वेक्षण में 1600 व्यक्तियों से पूछताछ की। इस पूछताछ में सामने आए परिणामों में बदलाव की सम्भावना साढ़े 3 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं हो सकती है।

भावी राष्ट्रपति-चुनाव में पूतिन के ख़िलाफ़ कोई मजबूत उम्मीदवार दिखाई नहीं दे रहा है। पूतिन का मुक़ाबला करने वाले कम्युनिस्ट नेता गेन्नदी ज़ुगानफ़ और उदारवादी नेता व्लदीमिर झिरिनोव्स्की को जनसर्वेक्षण के दौरान बड़ी मुश्किल से  तीन-तीन प्रतिशत मत मिले हैं। रूस के प्रधानमन्त्री दिमित्री मिदवेदफ़, रक्षामन्त्री सिर्गेय शायगू और विपक्षी नेता अलिक्सेय नवालनी को जनसर्वेक्षण के दौरान एक-एक प्रतिशत समर्थन ही मिला है। 

व्लदीमिर पूतिन कितना कमाते हैं?

समाजशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि अगर पूतिन अगले राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनते हैं, (जिसका फ़ैसला उन्होंने अभी तक नहीं किया है) तो विजय का सेहरा उनके सिर ही बँधेगा। अखिल रूसी जनमत शोध केन्द्र ’वत्सिओम’ के महानिदेशक वलेरी फ़्योदरफ़ ने ’आरबीके’ मीडिया समूह को अन्तर्वार्ता देते हुए कहा — क्या 2018 के राष्ट्रपति चुनावों में पूतिन के अलावा किसी अन्य उम्मीदवार के जीतने की कोई सम्भावना है? इस सवाल का यही जवाब दिया जा सकता है कि अगर पूतिन चुनाव नहीं लड़ेंगे और अपनी जगह किसी और आदमी को चुनाव लड़वाएँगे तो ऐसा हो सकता है। लेकिन अगर वे ख़ुद उम्मीदवार बनते हैं तो किसी भी दूसरे आदमी के जीतने के कोई आसार नहीं हैं।

लोकप्रियता का रहस्य 

’लवादा सेन्त्र’ के समाजशास्त्री दिनीस वोल्कफ़ का कहना है कि रूस में राष्ट्रपति चुनावों में एक साल से भी कम समय रह गया है और रूस में व्लदीमिर पूतिन पहले की तरह ही बेहद लोकप्रिय हैं। रूस-भारत संवाद से बात करते हुए वोल्कफ़ ने कहा कि ज़्यादातर रूसियों के मन में पूतिन की वही छवि बसी हुई है, जिसने उन्हें वर्तमान सदी के शुरू में देश में फैले आर्थिक संकट से मुक्ति दिलाई थी। पूतिन ने ही रूस को फिर से दुनिया की ’महाशक्ति’ के रूप में स्थापित किया और क्रीमिया को दोबारा रूस में शामिल किया है। पूतिन की ये उपलब्धियाँ उनकी दूसरी सभी उपलब्धियों पर भारी पड़ रही हैं।

वोल्कफ़ ने कहा  — 2014 में क्रीमिया को रूस में फिर से शामिल करने के बाद देश में पूतिन की लोकप्रियता अचानक बहुत ज़्यादा बढ़ गई। अप्रैल 2015 में तो रूस के 62 प्रतिशत मतदाता पूतिन को फिर से राष्ट्रपति चुनने के लिए तैयार थे। फिर अप्रैल 2016 में पूतिन की लोकप्रियता कुछ घटकर 53 प्रतिशत रह गई और आज वह 48 प्रतिशत के बराबर है। अब क्रीमिया को लेकर लोगों के मन पर हुआ असर कुछ कम हो गया है। उनका वह उत्साह कुछ थम-सा गया है। अब लोग देश की अन्दरूनी दिक़्क़तों के बारे में ज़्यादा सोच रहे हैं। मैं कहना चाहता हूँ कि अब हालत सामान्य हो गई है।

रूस-भारत संवाद से बात करते हुए उन्होंने आगे कहा — रूस में पूतिन के बेहद लोकप्रिय होने का एक और कारण यह भी है कि देश में उतना ही गम्भीर और मजबूत कोई और नेता दिखाई नहीं दे रहा है। ज़ुगानफ़ और झिरिनोव्स्की जैसे विपक्षी नेताओं का असर रूसियों के बीच दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है। और नवालनी जैसे नए विपक्षी नेताओं के पास इतने साधन ही नहीं हैं कि वे अपनी बात आम लोगों तक पहुँचा सकें। टीवी चैनल और मीडिया नवालनी को कोई महत्व नहीं देते। इस तरह रूस में ऐसा माहौल बन गया है कि व्लदीमिर पूतिन का कोई विकल्प नहीं है। 

छुट्टी वाले दिन पूतिन क्या करते हैं?

लोगों को मतदान केन्द्रों तक लाने की कोशिश 

’लवादा सेन्त्र’ द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई है कि ज़्यादातर रूसी मतदाता मतदान करने के लिए नहीं जाना चाहते। 13 प्रतिशत मतदाताओं ने तो मतदान करने से साफ़-साफ़ इन्कार कर दिया। 10 प्रतिशत को अभी भी इस बात में शक है कि वे मतदान करेंगे और 19 प्रतिशत मतदाताओं ने कहा कि उन्हें यह नहीं मालूम है कि अपना मत किसे देना चाहिए। कुल मिलाकर यह संख्या 42 प्रतिशत बनती है। ये ऐसे मतदाता हैं जो या तो मतदान नहीं करना चाहते या यह तय नहीं कर पाए हैं कि वे अपना मत किसे देंगे।

रूस के वित्त विश्वविद्यालय के राजनीतिक शोध केन्द्र के निदेशक पाविल सालिन ने रूस-भारत संवाद से बात करते हुए कहा — 2018 के राष्ट्रपति चुनावों में सरकार चाहती है कि भारी मतदान हो। सितम्बर 2016 में हुए संसदीय चुनावों में इतना कम मतदान हुआ था कि सरकार उसे देखकर नाख़ुश हुई थी। तब सत्तारूढ़ दल ’एकजुट रूस’ को कुल 54 प्रतिशत मत मिले थे। लेकिन मतदान सिर्फ़ 48 प्रतिशत हुआ था। इतना कम मतदान सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है। पिछले छह महीने से सरकार यह कोशिश कर रही है कि अगले राष्ट्रपति चुनाव में ज़्यादा से ज़्यादा मतदाता मतदान केन्द्रों तक पहुँचें और मत देने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करें। सरकार के लिए भारी मतदान राहत का बायस होगा। 

अखिल रूसी जनमत शोध केन्द्र ’वत्सिओम’ के महानिदेशक वलेरी फ़्योदरफ़ ने कहा कि अगर पूतिन 2018 के अगले चुनाव में खड़े होते हैं तो वे चाहेंगे कि बड़ी संख्या में मतदाता मतदान करें ताकि उनकी जीत पर कोई सवाल खड़े नहीं हों और वे भारी बहुमत के साथ जीतकर फिर से देश के राष्ट्रपति बनें। समाजशास्त्रियों का कहना है कि पूतिन की भारी लोकप्रियता के कारण ही यह खतरा पैदा हो गया है कि चुनाव में मतदान कम होगा क्योंकि लोगों को लगेगा कि पूतिन तो वैसे ही जीत जाएँगे। इस तरह पूतिन को मत देने की इच्छा रखने वाले बहुत से मतदाता मत देने ही नहीं पहुँचेंगे। 

पाविल सालिन का मानना है कि मतदाताओं को मतदान केन्द्रों तक लाने के लिए सरकार के सामने दो ही रास्ते हैं। पहली तकनीक यह है कि सरकार प्रशासनिक संसाधनों का इस्तेमाल करे, जोड़-तोड़ करे और अन्य तरीकों का इस्तेमाल करे। इससे मतदान का प्रतिशत तो बढ़ जाएगा, लेकिन चुनाव की वैधता पर उँगलियाँ उठने लगेंगी। दूसरा रास्ता यह हो सकता है कि देश के सामने कोई ऐसा सकारात्मक कार्यक्रम पेश किया जाए, जो सभी रूसवासियों के लिए बेहद आकर्षक सिद्ध हो और उस कार्यक्रम को अपना समर्थन देने के लिए मतदाता मतदान केन्द्रों तक पहुँचे। पाविल सालिन ने कहा — इस स्थिति में यह भी ज़रूरी होगा कि सरकार लोगों को यह विश्वास दिलाए कि इस कार्यक्रम पर अमल ज़रूर किया जाएगा। अब यह तो समय ही बताएगा कि सरकार इन दोनों रास्तों में से किस रास्ते को चुनेगी।  

क्या दुनिया में रूस को अकेला कर दिया ट्रम्प ने?

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