कतर एक छोटा-सा देश है, जिसका क्षेत्रफल सिर्फ़ 11 हज़ार 586 वर्ग किलोमीटर है और जिसकी जनसंख्या सिर्फ़ 24 लाख है। वह फ़ारस की खाड़ी के किनारे स्थित है। 5 जून को जब अचानक अरब दुनिया के छह देशों ने उससे अपने रिश्ते तोड़ने का ऐलान किया तो सारी दुनिया का ध्यान कतर की तरफ़ केन्द्रित हो गया है। ये छह मुल्क हैं — सऊदी अरब, सँयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र, यमन और मालदीव। इसके अलावा लीबिया की अन्तरिम सरकार ने भी कतर से रिश्ते तोड़ने का ऐलान कर दिया है।
इन देशों ने कतर पर सीधे-सीधे यह आरोप लगाया है कि वह ’इस्लामी राज्य’ (आईएस), ’अल-क़ायदा’ और ’मुस्लिम ब्रदरहुड’ का समर्थन करके और इन आतंकवादी गिरोहों को सहायता देकर पश्चिमी एशिया की स्थिति को अस्थिर कर रहा है। सऊदी अरब, सँयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने कतर के सभी नागरिकों से कहा है कि वे दो सप्ताह के भीतर-भीतर उनके यहाँ से चले जाएँ। कतर के विदेश मन्त्रालय ने इन देशों की इस कार्यवाही पर अफ़सोस ज़ाहिर किया है।
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रूसी मानविकी विश्वविद्यालय के आधुनिक एशिया विभाग के प्रोफ़ेसर और अरब विशेषज्ञ ग्रिगोरी कसाच का मानना है कि प्राकृतिक गैस के भण्डारों की दृष्टि से दुनिया में तीसरे नम्बर पर माने जाने वाले इस छोटे से देश कतर पर यह चोट इसलिए की गई है क्योंकि सऊदी अरब और ईरान के रिश्ते बहुत बिगड़ चुके हैं। सऊदी अरब का मानना है कि ईरान पश्चिमी एशिया में ’बदी का पिटारा’ है। इसलिए सऊदी अरब यह कोशिश कर रहा है कि ईरानी ख़तरे के ख़िलाफ़ पश्चिमी एशिया के सभी अरब देशों को एकजुट कर लिया जाए और अरब देशों का एक संघ बना लिया जाए।
रूस-भारत संवाद से बात करते हुए ग्रिगोरी कसाच ने बताया — लेकिन कतर अपनी स्वतन्त्र नीतियाँ चला रहा है। उसे इसी बात के लिए सज़ा दी गई है। कतर के बादशाह तमीम ने पिछले दिनों यह कहा था कि ईरान एक महत्वपूर्ण और क्षेत्रीय महाशक्ति है और उसकी भूमिका को स्वीकार किया जाना चाहिर। लेकिन सऊदी अरब ने कतर के बादशाह की इस टिप्पणी की निन्दा की है।
रूस के अभिनव विकास संस्थान के पश्चिमी एशिया संकट अनुसन्धान विभाग के संचालक अन्तोन मरदासफ़ ने बताया — हालाँकि कतर ने बाद में यह ऐलान भी कर दिया था कि बादशाह तमीम का बयान एक अफ़वाह है, लेकिन सऊदी अरब की नाराज़गी कम नहीं हुई क्योंकि कतर ईरान और सीरिया के साथ वास्तव में सहयोग कर रहा है। सीरिया में दोनों देश शिया और सुन्नी क़ैदियों की अदला-बदली करने के बारे में आपस में बातचीत करते रहते हैं।
विगत 24 मई को डोनाल्ड ट्रम्प ने एर-रियाद की यात्रा की थी। इस यात्रा की भी इसमें अपनी भूमिका रही। एर-रियाद में ट्रम्प ने सऊदी अरब का पूरा-पूरा समर्थन करते हुए कहा कि ईरान ही पश्चिमी एशिया के लिए प्रमुख ख़तरा है। ग्रिगोरी कसाच ने कहा — ट्रम्प की इस यात्रा से सऊदी अरब को बड़ा प्रोत्साहन मिला और उसमें आशा का संचार हुआ। इसलिए डोनाल्ड ट्रम्प की इस यात्रा के बाद सऊदी अरब ने यह तय किया कि विद्रोही कतर को सबक सिखाया जाना चाहिए।
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रूस और कतर के बीच रिश्तों का इतिहास भी बेहद जटिल रहा है। सन् 2004 में कतर की राजधानी दोहा में रूस के ख़ुफ़िया एजेण्टों ने कतर में छुपे हुए चेचेन अलगाववादियों के एक नेता ज़िलिमख़ान यन्दरबियेफ़ की हत्या कर दी थी। तब कतर की अदालत ने रूस के दो ख़ुफ़िया एजेण्टों को पकड़कर आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी थी। इसके बाद उनकी मुक्त्ति के लिए देर तक लम्बी-लम्बी वार्ताएँ चलीं और उसके बाद ही उन्हें रूस वापिस लौटा पाना सम्भव हो पाया।
फिर नवम्बर 2011 में एक नया काण्ड हुआ। दोहा के हवाई अड्डे पर कस्टम अधिकारियों ने रूसी राजदूत व्लदीमिर तितरेन्का की पिटाई कर दी। मीडिया ने बताया कि सीरिया में रूस और कतर के आमने-सामने होने की वजह से ही यह घटना घटी थी। सीरिया में रूस सीरियाई सरकार का समर्थन कर रहा है, जबकि कतर सीरियाई विद्रोहियों को समर्थन दे रहा है। इस घटना के बाद रूस ने कतर के साथ अपने राजनयिक रिश्तों का स्तर घटाकर कम कर दिया।
सीरिया पर मतभेद होने के अलावा रूस और कतर प्राकृतिक गैस के बाज़ार में एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी हैं। यह माना जाता है कि सीरिया में लड़ाई इसी वजह से शुरू हुई क्योंकि रूस के सहयोगी बशर असद ने सीरिया के रास्ते उस गैस पाइपलाइन को डालने में अड़ंगे लगाए थे, जिससे कतर की गैस यूरोप जाने वाली थी।
लेकिन ज़्यादातर विशेषज्ञ इस बात से सहमत नहीं हैं। दुनिया के तेल व गैस बाज़ार के विशेषज्ञ मिख़ाइल क्रुतीख़िन ने फ़ोर्ब्स पत्रिका में अपने एक लेख में बताया कि कतर से सीरिया के रास्ते यूरोप तक पाइपलाइन बनाने का विचार आर्थिक दृष्टि से फ़ायदेमन्द नहीं है। मिख़ाइल क्रुतीख़िन लिखते हैं — ज़मीन के रास्ते कतर की गैस को यूरोप पहुँचाने की कोई भी परियोजना समुद्र के रास्ते भेजी जाने वाली गैस के मुकाबले महंगी होगी।
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रूस और कतर के रिश्ते कितने भी जटिल क्यों न हों, लेकिन कतर के मुख्य प्रतिद्वन्द्वी सऊदी अरब के साथ भी रूस के रिश्ते ज़रा भी बेहतर नहीं हैं। अन्तोन मरदासफ़ के अनुसार, फ़ारस के खाड़ी के देशों के साथ रूस के रिश्ते बहुत जटिल हैं। अब हम इन रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इस परिस्थिति में रूस के लिए इसका कोई मतलब नहीं है कि वह वर्तमान संकट में, जिससे रूस का कोई लेना-देना ही नहीं है, दोनों पक्षों में से किसी एक का समर्थन करे।
ग्रिगोरी कसाच का भी यही मानना है। उनका कहना है कि इस संकट में रूस के लिए ज़रूरी यह है कि इस अनबन के फलस्वरूप तेल और गैस की क़ीमतों में बड़ा उतार-चढ़ाव न आए। बाक़ी सब बातों से रूस को कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। रूस-भारत संवाद से बात करते हुए उन्होंने कहा — दोनों पक्षों में से किसी भी एक पक्ष का समर्थन करने से रूस को कोई फ़ायदा नहीं होगा। इसलिए, मेरा ख़याल है कि बुद्धिमानी इसी में होगी कि रूस निष्पक्ष रहे और यही कहे — लड़ो नहीं, लड़ने से क्या फ़ायदा।
अभी तक रूस ने यही नीति अपना रखी है। रूस के राष्ट्रपति के प्रेस सचिव दिमित्री पिस्कोफ़ ने कहा कि रूस खाड़ी के देशों के आपसी घरेलू मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। उन्होंने उम्मीद की है कि यह झगड़ा अपने आप ही शान्ति के साथ सुलझ जाएगा। कतर पर आतंकवाद को समर्थन देने के आरोपों पर उन्होंने कोई भी टीका-टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है।
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